-डा. जयंतीलाल भंडारी-
हाल ही में 14 एवं 15 नवंबर को ब्राजील में आयोजित हुआ 11वां ब्रिक्स ‘ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका’ शिखर सम्मेलन भारत के लिए दो दृष्टिकोणों से लाभप्रद रहा। एक, भारत की पहल पर ब्रिक्स सम्मेलन ने आतंकवाद एवं संरक्षणवाद के खिलाफ एक सख्त स्टैंड लिया। दो, ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान ब्रिक्स बिजनेस फोरम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा भारत में विदेशी निवेश की असीम और अनगिनत संभावनाओं को प्रभावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किए जाने पर ब्रिक्स देशों की कंपनियों की ओर से भारत में निवेश की नई संभावनाओं का परिदृश्य उभरकर दिखाई दिया। गौरतलब है कि 15 नवंबर को 11वें ब्रिक्स सम्मेलन में दुनिया की पांच उभरती हुई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं ने जारी संयुक्त घोषणा पत्र में संरक्षणवाद के खिलाफ कमर कसते हुए बहुपक्षीयता का संदेश बुलंद किया है। कहा गया कि व्यापार में तनाव और नीतिगत अनिश्चितता का वैश्विक अर्थव्यवस्था में आपसी विकास, कारोबार व निवेश वृद्धि पर विपरीत असर पड़ा है। ब्रिक्स देशों ने व्यापार संरक्षणवाद और वैश्विक आतंकवाद से निपटने के लिए एक समग्र रुख का आह्वान किया है। साथ ही डब्ल्यूटीओ के सदस्य देशों से कहा गया है कि वे एक तरफा संरक्षणवादी कदम उठाने से बचें। कहा गया है कि नियमों पर आधारित पारदर्शी और मुक्त वैश्विक व्यापार को बढ़ाया जाना जरूरी है। 11वें ब्रिक्स सम्मेलन में सदस्य देशों ने कहा कि वैश्विक सुस्ती के बावजूद ब्रिक्स देशों ने आर्थिक वृद्धि को रफ्तार दी, करोड़ों लोगों को गरीबी से बाहर निकाला और प्रौद्योगिकी एवं नवाचार के क्षेत्र में नई सफलताएं हासिल कीं। ब्रिक्स की स्थापना के 10 साल बाद अब भविष्य में हमारे प्रयासों की दिशा पर विचार करने के लिए यह फोरम एक अच्छा मंच है। ब्रिक्स देशों की इकाइयों के बीच कारोबार को सरल बनाने से आपसी व्यापार और निवेश बढ़ेगा। अगले 10 वर्षों के लिए हमारे बीच कारोबार में प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की पहचान की जानी चाहिए और उनके आधार पर ब्रिक्स देशों के बीच सहयोग की रूपरेखा तैयार की जाए। वास्तव में डिजिटल क्रांति ब्रिक्स और अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए नए अवसर लेकर आई है। यह अहम है कि ज्यादातर देश आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और बिग डेटा एनालिटिक्स की ओर से लाए जा रहे बदलावों के लिए तैयार हैं। डिजिटल आधारभूत ढांचे में ज्यादा निवेश और डिजिटलीकरण के क्षेत्र में कौशल विकास की बात कही गई। गौरतलब है कि कोई 18 वर्ष पूर्व 2001 में ब्राजील, रूस, भारत और चीन के जिस ब्रिक्स समूह ने अंतरराष्ट्रीय कारोबारी परिदृश्य में एकजुट होकर आगे बढ़ने के लिए कदम उठाए थे, वही समूह 2011 में दक्षिण अफ्रीका को साथ लेकर ब्रिक्स के नाम से चमकते हुए तेजी से कदम बढ़ा रहा है। ब्रिक्स की स्थापना का मुख्य उद्देश्य अपने सदस्य देशों की सहायता करना है। ब्रिक्स देशों के पास खुद का एक बैंक भी है। इसका कार्य सदस्य देशों और अन्य देशों को कर्ज के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान करना है। ब्रिक्स देशों के पास दुनिया की कुल जनसंख्या का 42 फीसदी, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद ‘जीडीपी’ का करीब 23 फीसदी हिस्सा है। विश्व का 17 प्रतिशत व्यापार ब्रिक्स देशों की मुट्ठियों में है। पिछले 10 वर्षों में इन देशों ने वैश्विक आर्थिक विकास में 50 प्रतिशत भागीदारी निभाई है। निश्चित रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा 11वें ब्रिक्स सम्मेलन में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रहे संरक्षणवाद के मुद्दे को उठाया गया। मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि व्यापार अनुकूल सुधारों, जरूरत के अनुरूप नीतियों, राजनीतिक स्थिरता की वजह से भारत दुनिया की सबसे खुली और निवेश के लिए अनुकूल अर्थव्यवस्था है। भारत सरकार 2024 तक भारत को 5,000 अरब डालर की अर्थव्यवस्था बनाना चाहती है, इसलिए भारत को बुनियादी ढांचा क्षेत्र में 1,500 अरब डालर के निवेश की जरूरत है। मोदी ने भारत में असीमित संभावनाओं और अनगिनत अवसरों पर जोर देते हुए ब्रिक्स देशों के कारोबारियों से इनका लाभ उठाने के लिए कहा। मोदी ने ब्रिक्स देशों के बीच इनोवेशन बढ़ाने, 12वें ब्रिक्स सम्मेलन के आयोजन तक 500 अरब डालर के ब्रिक्स देशों के आपसी कारोबार हासिल करने के लिए रोडमैप बनाने तथा एग्रोटेक स्टार्टअप के अनुभव को साझा करने की दिशा में आगे बढ़ने का सुझाव भी दिया। निःसंदेह 11वें ब्रिक्स सम्मेलन में भारत की पहल पर ब्रिक्स समूह ने आतंकवाद के खिलाफ और संरक्षणवाद के खिलाफ एक सख्त स्टैंड लिया है। इस बात पर गंभीरतापूर्वक विचार किया गया कि यदि विश्व व्यापार व्यवस्था वैसे काम नहीं करती जैसे कि उसे करना चाहिए तो डब्ल्यूटीओ ही एक ऐसा संगठन है जहां इसे दुरुस्त किया जा सकता है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो दुनियाभर में विनाशकारी व्यापार लड़ाइयां ही 21वीं शताब्दी की हकीकत बन जाएंगी। डब्ल्यूटीओ के अस्तित्व को बनाए रखने की इच्छा रखने वाले देशों के द्वारा यह बात भी गहराई से आगे बढ़ाई जानी होगी कि विभिन्न देश एक-दूसरे को व्यापारिक हानि पहुंचाने की होड़ लगाने की बजाय डब्ल्यूटीओ के मंच से ही वैश्वीकरण के दिखाई दे रहे नकारात्मक प्रभावों का उपयुक्त हल निकालें। निश्चित रूप से 11वां ब्रिक्स सम्मेलन एक ऐसे समय में हुआ है, जब चीन और भारत की अर्थव्यवस्था में सुस्ती है और साउथ अफ्रीका, ब्राजील और रूस भी गंभीर गतिरोध का सामना कर रहे हैं। ऐसे में इस शिखर सम्मेलन से ट्रेड वार के खिलाफ सामूहिक रूप से संगठित होकर ट्रेड वार की धार पलटने का प्रयास हुआ है। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि इस बार 14 और 15 नवंबर को 11वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में पिछली बार के 10वें शिखर सम्मेलन से कहीं ज्यादा जोरदार ढंग से खुली और समावेशी विश्व अर्थव्यवस्था की मांग दोहराई गई और विश्व को दृढ़तापूर्वक यह संदेश दिया गया कि कारोबार में सिर्फ अपना-अपना हित देखने के घातक प्रभाव होंगे। 11वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के माध्यम से दुनिया को यह जोरदार संदेश दिया गया कि बहुध्रुवीय दुनिया का निर्माण ब्रिक्स के घोषित लक्ष्यों में से एक है, लिहाजा संरक्षणवादी कदमों और वैश्विक आतंकवाद की प्रवृत्ति का मुकाबला करने के लिए ब्रिक्स के कदम अब तेजी से आगे बढ़ेंगे। उम्मीद करें कि 11वें ब्रिक्स सम्मेलन के बाद ब्रिक्स देशों के आर्थिक-सामाजिक सहयोग का सिलसिला और मजबूत होगा।
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